गुर नानक गुर नानक तूं-कविताएं-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
नदी किनारे कूक पुकारां,
उम्मल उम्मल बांह उलारां,
‘साईआं’ ‘साईआं’ हाकां मारां,
तूं साजन अलबेला तूं ।
‘तर के आवां’ ज़ोर न बाहीं,
शूके नदी कांग भर आही,
‘तुर के आवां’ राह न काई,
साजन सखा सुहेला तूं ।
तुलहा मेरा बहुत पुराणा,
घस घस होया अद्धोराणा,
चप्पे पास न कुई मुहाणा,
चड़्ह के पहुंच दुहेला ऊ ।
बद्दलवाई, कहर हवाई,
उडन खटोले वाले भाई,
धूम मचाई, दए दुहाई:-
“ए ना उड्डन वेला उ ।
तूं समरत्थ शकतियां वाला,
जे चाहें कर सकें सुखाला,
फिर तूं मेहरां तरसां वाला,
कर छेती ‘मिल-वेला’ ऊ ।