ग़रीबे-शह्र के नाम-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

ग़रीबे-शह्र के नाम-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,

ग़रीबे-शह्र तिरी दुखभरी नवा प’ सलाम
तिरी तलब तिरी चाहत तिरी वफ़ा प’ सलाम
हरेक हर्फ़े-तमन्ना-ए-दिलरुबा प’ सलाम
हदीसे-दर्दो-सुकूते-सुख़न अदा प’ सलाम

दरीदा दिल ! तिरे आहंग साज़े-ग़म प’ निसार
गुहरफ़रोश ! तिरे रंग-ए-चश्मे-नम प’ निसार

जुनूँ का शहर है आबाद फ़स्ले-दार की ख़ैर
हरेक दिल है ग़िरेबाँ भरी बहार की ख़ैर
बुझे हैं बाम मगर शम्म-ए-रहगुज़ार की ख़ैर
तमाम उम्र तो गुज़रे इस इ‍तज़ार की ख़ैर

रुख़े-निगारो-ग़मे-यार को नज़र न लगे
गिला नहीं है मगर आँख उम्र-भर न लगे

दिलो-नज़र की शिकस्तों का क्या शुमार करें
शुमारे-ज़ख़्म अबस है निजात से पहले
कुछ और दीदा-ए-ख़ूँरंग को गुलाब करें
सबा का ज़िक्र क़यामत है रात से पहले

अभी लबों पे हिकायाते-ख़ूँ-चकीदा सही
ब-सीना रहे सिपरम-दस्तो-पा-बुरीदा सही