खरारी छंद (जलियाँवाला बाग)-शुचिता अग्रवाल शुचिसंदीप -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Suchita Agarwal Suchisandeep
उस माटी का, तिलक लगा, जिसमें खुश्बू, आजादी की है।
जलियाँवाला, बाग जहाँ, हुंकारें अरि, बर्बादी की है।।
देखी जग ने, कायरता, हत्या की थी, निर्मम गोरों ने।
उत्पीड़न भय, हिंसा की, तस्वीरें तब, देखी ओरों ने।।
था कायर वो, हत्यारा, डायर जिसने, यह कांड किया था।
आकस्मक आ, खूनी ने, मासूमों को, झट मार दिया था।।
घन-घन चलती, गोली में, कंपित चीखें, चित्कार भरी थी।
बच्चे, बूढ़े, नर-नारी, भोली जनता, तब खूब मरी थी।।
मत पूछो तब, भारत के, लोगों का यह, जीवन कैसा था।
अंग्रेजों का, शासन ज्यूँ, अंगारों पर, चलने जैसा था।
उखड़ेगी कब, अंग्रेजी, शासन की जड़, सबके मन में था।
आक्रोश जोश, बदले का, भाव समाहित, हर जन जन में था।।
अंग्रेजों की, सत्ता को, हिलवाने में, जो बना सहायक।
जलियाँवाला, अति जघन्य, कांड बना था, तब उत्तर दायक।।
ज्वाला फूटी, वीरों में, अंगारे से, आँखों में आये।
आजादी के, बादल तब, भारत भू पर, लहरा कर छाये।।
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खरारी छंद विधान –
खरारी छंद 32 मात्राओं का समपद मात्रिक छंद है जिसमें क्रमशः
8, 6, 8, 10 मात्राओं पर यति आवश्यक है। चार चरणों के इस
छंद में दो दो या चारों चरण समतुकांत होते हैं।
इसका मात्रा विन्यास निम्न है-
2 222, 222, 2222, 2 2222
पहली यति द्विकल (2,11) + छक्कल (3+3 या 4+2 या 2+4)
दूसरी यति छक्कल।
तीसरी यति अठकल।
चौथी यति द्विकल (2,11) + अठकल में (4+4 या
3+3+2 दोनों हो सकते हैं।)
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