क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
क्या ऐसे कम-सुख़न से कोई गुफ़्तगू करे
जो मुस्तक़िल सुकूत से दिल को लहू करे
अब तो हमें भी तर्क-ए-मरासिम का दुख नहीं
पर दिल ये चाहता है के आगाज़ तू करे
तेरे बग़ैर भी तो ग़नीमत है ज़िन्दगी
खुद को गँवा के कौन तेरी जुस्तजू करे
अब तो ये आरज़ू है कि वो जख़्म खाइये
ता-ज़िन्दगी ये दिल न कोई आरज़ू करे
तुझ को भुला के दिल है वो शर्मिंदा-ए-नज़र
अब कोई हादिसा ही तेरे रु-ब-रू करे
चुपचाप अपनी आग में जलते रहो “फ़राज़”
दुनिया तो अर्ज़े–हाल से बे-आबरू करे