कोरी स्लेट नहीं होते बच्चे-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
बच्चे कोरी स्लेट नहीं होते,
और बहुत कुछ होते हैं।
उनके मन मस्तक में
गूढ़ी इबारत तथा
और बहुत कुछ लिखा लिखाया।
सिर्फ़ हम ही उसको
पढ़ना नहीं जानते।
बच्चे के नेत्रों में सैकड़ों समुद्र तैरते,
सपनों में घूमते जमीं आसमां।
अखंड ब्रह्मांड, नक्षत्र कितने सारे।
तीव्र गति की बिजली भरे
नन्हे नन्हे पैर ख्वाबों जैसे।
बच्चों से ही सीखा है
नरमे ने खिलना।
परिंदों ने पंख पसारना।
पवन ने करनी अठखेलियाँ,
और दिन रात महकना सीखा है।
बच्चों ने ही सिखाया है
शिरीष के फूलों से लेकर
रात की रानी तक को महकना।
नृत्य-सी करती चूड़े खनकाती
सद्यविवाहिता को टहकना
कदम कदम ताल ताल दरिया-सा बहना,
चुपचाप चलना मुँह से कुछ न कहना।
बच्चे ही सिखाते हैं किस्सागोई
पीढ़ी दर पीढ़ी पुश्त दर पुश्त।
नहीं तो कब का भूल जाते,
जंगल में खोए
रूप बसंत की कहानी।
नहीं मरने देते हमारी
अनंत सफ़र पर चलने की अभिलाषा।
लगातार भरते हैं
माँ बाप के परों में परवाज़
उड़ने पुड़ने पवन सवार।
पालने में पड़े बच्चे भी हमें ऊर्जा बख़्शते
नन्हे नन्हे सूरज।
नेत्र जगमग जुगनुओं का जोड़ा।
पास बुलाते और समझाते,
हमारे पास बहुत कुछ है तुम्हारे लिए।
जिस तरह की मासूमियत है गुलाब की पंखुड़ियों-सी,
रवेल की सफे़द कलियों-सी।
तार पर लटकती ओस की बूँदों-सी।
जलकण जलकण।
तरलता हे पारे-सी।
निर्मल नदी में तैरते बुलबुले-सी।
थोड़े समय ही सही, साँसों में घुलनशील।
मिश्री से भी मीठी मुस्कान।
श्वासों में चलेगी उम्र भर साथ साथ।
बच्चे बहुत कुछ कह जाते हैं बिन बोले।
तुम्हारी आँखों में से मुहब्बत की
वर्तनी रटते बच्चे।
मासूम रब्ब नन्हे-से।
बच्चा तो बच्चा होता है
लड़का या लड़की नहीं होता।
माँ-बापों तुम क्यों अफ़सोस करते हो।
स्वार्थ के मारे फ़र्ज़ भूल जाते हो।
भूलो नहीं, रिश्तों के साथ बेईमान
दोनों जहान में बरबाद होते हैं।
कोमल तंतु विनष्ट कर कौन-सा धर्म पालते हो
धर्मवान पिताओं कोखों की तलाशी लेते,
भूल जाते हो जननहारी माँ।
नन्ही-सी राखी घोड़ी* की वल्गाएँ गूँधती।
परदेसन बहन
परिवार का सुख मनाती सुबह शाम,
बाबुल का बसता रहे आँगन।
बसता रहे मेरा नगर गाँव।
ख़ुद के लिए कभी कुछ न माँगती,
दरियादिल बिटिया प्यारी
इसकी भी अलख मिटाते हो।
बड़ी अक्लों वाले!
बेबस आँखों की इबारत पढ़ो ध्यान से
अनलिखे कितने ही इकरारनामे
हर्फ़ हर्फ़ शब्द बनते
वैवाहिक गीत
विलाप बनतीं कभी लोरियाँ, तोतले मासूम बोल।
बच्चों की इन स्लेटों पर
अनलिखा पढ़ो।
बहुत सारी चिंघाटियाँ उभर आएँगी टिमटिमाती।
यही तो सूरज चाँद सितारे हैं
तुम्हारी आगोश में खेलते।
आगोश सँभालो।
*विवाह के समय दूल्हे की घोड़ी पर सवारी और
उस समय गाए जाने वाले गीतों को भी घोड़ी कहते हैं।
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