कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ -शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ -शब्द -गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

 

कोटि कोटी मेरी आरजा पवणु पीअणु अपिआउ ॥
चंदु सूरजु दुइ गुफै न देखा सुपनै सउण न थाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥१॥
साचा निरंकारु निज थाइ ॥
सुणि सुणि आखणु आखणा जे भावै करे तमाइ ॥१॥ रहाउ ॥
कुसा कटीआ वार वार पीसणि पीसा पाइ ॥
अगी सेती जालीआ भसम सेती रलि जाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥२॥
पंखी होइ कै जे भवा सै असमानी जाउ ॥
नदरी किसै न आवऊ ना किछु पीआ न खाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥३॥
नानक कागद लख मणा पड़ि पड़ि कीचै भाउ ॥
मसू तोटि न आवई लेखणि पउणु चलाउ ॥
भी तेरी कीमति ना पवै हउ केवडु आखा नाउ ॥४॥२॥(14)॥