कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा-गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
कोई आणि मिलावै मेरा प्रीतमु पिआरा हउ तिसु पहि आपु वेचाई ॥१॥
दरसनु हरि देखण कै ताई ॥
क्रिपा करहि ता सतिगुरु मेलहि हरि हरि नामु धिआई ॥१॥ रहाउ ॥
जे सुखु देहि त तुझहि अराधी दुखि भी तुझै धिआई ॥२॥
जे भुख देहि त इत ही राजा दुख विचि सूख मनाई ॥३॥
तनु मनु काटि काटि सभु अरपी विचि अगनी आपु जलाई ॥४॥
पखा फेरी पाणी ढोवा जो देवहि सो खाई ॥५॥
नानकु गरीबु ढहि पइआ दुआरै हरि मेलि लैहु वडिआई ॥६॥
अखी काढि धरी चरणा तलि सभ धरती फिरि मत पाई ॥७॥
जे पासि बहालहि ता तुझहि अराधी जे मारि कढहि भी धिआई ॥८॥
जे लोकु सलाहे ता तेरी उपमा जे निंदै त छोडि न जाई ॥९॥
जे तुधु वलि रहै ता कोई किहु आखउ तुधु विसरिऐ मरि जाई ॥१०॥
वारि वारि जाई गुर ऊपरि पै पैरी संत मनाई ॥११॥
नानकु विचारा भइआ दिवाना हरि तउ दरसन कै ताई ॥१२॥
झखड़ु झागी मीहु वरसै भी गुरु देखण जाई ॥१३॥
समुंदु सागरु होवै बहु खारा गुरसिखु लंघि गुर पहि जाई ॥१४॥
जिउ प्राणी जल बिनु है मरता तिउ सिखु गुर बिनु मरि जाई ॥੧੫॥
जिउ धरती सोभ करे जलु बरसै तिउ सिखु गुर मिलि बिगसाई ॥१६॥
सेवक का होइ सेवकु वरता करि करि बिनउ बुलाई ॥१७॥
नानक की बेनंती हरि पहि गुर मिलि गुर सुखु पाई ॥१८॥
तू आपे गुरु चेला है आपे गुर विचु दे तुझहि धिआई ॥१९॥
जो तुधु सेवहि सो तूहै होवहि तुधु सेवक पैज रखाई ॥२०॥
भंडार भरे भगती हरि तेरे जिसु भावै तिसु देवाई ॥२१॥
जिसु तूं देहि सोई जनु पाए होर निहफल सभ चतुराई ॥२२॥
सिमरि सिमरि सिमरि गुरु अपुना सोइआ मनु जागाई ॥२३॥
इकु दानु मंगै नानकु वेचारा हरि दासनि दासु कराई ॥२४॥
जे गुरु झिड़के त मीठा लागै जे बखसे त गुर वडिआई ॥२५॥
गुरमुखि बोलहि सो थाइ पाए मनमुखि किछु थाइ न पाई ॥२६॥
पाला ककरु वरफ वरसै गुरसिखु गुर देखण जाई ॥२७॥
सभु दिनसु रैणि देखउ गुरु अपुना विचि अखी गुर पैर धराई ॥२८॥
अनेक उपाव करी गुर कारणि गुर भावै सो थाइ पाई ॥२९॥
रैणि दिनसु गुर चरण अराधी दइआ करहु मेरे साई ॥३०॥
नानक का जीउ पिंडु गुरू है गुर मिलि त्रिपति अघाई ॥३१॥
नानक का प्रभु पूरि रहिओ है जत कत तत गोसाई ॥੩੨॥੧॥੭੫੭॥
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