कुदरति करि कै वसिआ सोइ-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
कुदरति करि कै वसिआ सोइ ॥
वखतु वीचारे सु बंदा होइ ॥
कुदरति है कीमति नही पाइ ॥
जा कीमति पाइ त कही न जाइ ॥
सरै सरीअति करहि बीचारु ॥
बिनु बूझे कैसे पावहि पारु ॥
सिदकु करि सिजदा मनु करि मखसूदु ॥
जिह धिरि देखा तिह धिरि मउजूदु ॥१॥(83)॥