काहे पूत झगरत हउ संगि बाप-गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
काहे पूत झगरत हउ संगि बाप ॥
जिन के जणे बडीरे तुम हउ तिन सिउ झगरत पाप ॥१॥ रहाउ ॥
जिसु धन का तुम गरबु करत हउ सो धनु किसहि न आप ॥
खिन महि छोडि जाइ बिखिआ रसु तउ लागै पछुताप ॥१॥
जो तुमरे प्रभ होते सुआमी हरि तिन के जापहु जाप ॥
उपदेसु करत नानक जन तुम कउ जउ सुनहु तउ जाइ संताप ॥੨॥੧॥੭॥੧੨੦੦॥