कविता-हरजीत सिंह तुकतुक -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harjeet Singh Tuktuk Part 2

कविता-हरजीत सिंह तुकतुक -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita By Harjeet Singh Tuktuk Part 2

 

श्रृंगार रस

एक़ बार हम मन्च पर खडे कविता सुना रहे थे।
श्रोता श्रृंगार रस में डूबे जा रहे थे।

हमारे कंठ से
कविता कामिनी बही जा रही थी।
परन्तु हमारी नज़र
पहली पंक्ति से आगे नहीं बढ़ पा रही थी।

क्योंकि पहली पंक्ति में बैठी एक बाला
बार बार हमें देख कर मुस्करा रही थी।
और लगातार
अपनी सैंडल सहला रही थी।

जब काफी देर तक यह प्रक्रिया नहीं रूकने पाई।
तब हमारी अन्तरात्मा ज़ोर से चिल्लाई।

हमने कहा
हे देवी, क्यों सेन्टर की पालिसी अपना रही हो।
ऊपर से मुस्करा रही हो ।
नीचे से चप्पल दिखा रही हो।

अरे अगर खुन्दक आ रही है
तो खुन्दक उतारो।
चप्पल उतारो
और दे मारो।

वो बोली
कविवर आप व्यर्थ ही घबरा रहे हैं।
शायद मेरा व्यवहार समझ नहीं पा रहे हैं।

आप के श्रृंगार रस में गोते लगा रही हूं।
इस लिए बार बार मुस्करा रही हूं।
और मेरे पति कहीं गोते ना लगाने लगें।
इस लिए यह सैंडल सहला रही हूं।

 

खून नहीं था

खून नहीं था।
बेच दिया था सारा।
भूख लगी थी।

खून नहीं था।
पानी जैसा कुछ था।
खौलता न था।

खून नहीं था।
अपना वह तभी।
काम आया।

खून नहीं था।
किसी जगह पर।
सौ मरे तो थे।

खून नहीं था।
खटमल हैरान थे।
नेताओं में भी।

खून नहीं था।
उतरा किसी आंख।
गैर थी न वो।

खून नहीं था।
इबादत थी मेरी।
बकरीद थी।

 

पानी कम है

पानी कम है।
चलो फूलों से खेलें।
होली मिल के।

पानी कम है।
चाय में उनकी भी।
नेता जी हैं न।

पानी कम है।
कुओं, नदी, तालों में।
पेड़ काटे होंगे।

पानी कम है।
पर दिल बड़ा है।
तुम भी पियो।

पानी कम है।
बाढ नहीं है यह।
फ़र्ज़ी न्यूज़ है।

पानी कम है।
रात अभी बाक़ी है।
नीट पीते हैं।

पानी कम है।
आग नहीं बुझेगी।
लगाई क्यों थी?

 

सावन

लो फिर आ गया सावन।
अब छाता ख़रीदना पड़ेगा।
पर छाता किस काम आएगा।
केवल सर को भीगने से बचाएगा।

पत्नी बोली,
जेब से थोड़े से पैसे और निकालो।
इस बार रेनकोट ख़रीद ही डालो।

हमने कहा,
देवी,
रेनकोट से नहीं हल होगी परेशानी।

समझो,
सावन में,
नालों से सड़कों पर उतर आता है पानी।

शहर की सारी गंदगी,
आँखों के सामने नज़र आती है।
आके सीधे,
हमारे पैरों से लिपट जाती है।

मानो कह रही हो।
प्रगति के नाम पर,
पर्यावरण की जान मत निकालो।
अपने काम करने के,
तरीक़ों को बदल डालो।

सतत विकास नहीं करोगे।
तो कोई काग़ज़ की कश्ती नहीं चलाएगा।
सावन के नाम पे,
सिर्फ़ कचरा याद आएगा।

पत्नी बोली,
रेनकोट नहीं लाना, तो मत लाओ।
पर सावन को अंतर्रष्ट्रीय मुद्दा मत बनाओ।
ख़रीद लो बस एक बढ़िया सी गाड़ी।
फिर गंदगी नहीं लिपटेगी मेरे अनाड़ी।

हमने कहा,
क्या कहने का कर रही हो प्रयास।
गाड़ी से प्रदूषण बढ़ेगा,
तो कैसे होगा सतत विकास।

पत्नी बोली,
साइकिल ख़रीदने को बोल रही हूँ।
भोले भंडारी।
पच्चीस साल से,
पत्नी हूँ तुम्हारी।

तुमसे ज़्यादा पर्यावरण की चिंता करती हूँ।
सूखा और गीला कचरा अलग पैक करती हूँ।
सारी दुनिया को सुधारने मत जाओ।
तुम अगर सिर्फ़ खुद सुधर जाओ।

पर्यावरण,
खुद ब खुद ठीक हो जाएगा।
सावन भी,
वही पुरानी मिट्टी की ख़ुशबू याद दिलाएगा।

 

पालक

हमारे ऑफ़िस का,
सबसे तेज वाहन चालक।
पिज़्ज़ा पास्ता खाने वाला बालक।

हमने देखा,
घर से डिब्बा ला रहा है।
पिछले पाँच दिन से पालक खा रहा है।

हमने पूछा,
क्या हुआ मेरे क्रिस गेल।
क्यों रवि शास्त्री की तरह रहा है खेल।

वो बोला,
हो गयी है शादी।
पर आप इतने अचरज में क्यों भा जी।

आपको भी तो बुलाया था।
और सारा रायता,
आप ही ने तो फैलाया था।

हमने कहा,
बालक, तेरा तात्पर्य, हमें समझ नहीं आया।
तब उसने हमें समझाया।

वो बोला,
आपने ही,
शुरू किया था बवाल।

जब मेरी बीवी को कहा था।
कि बालक का रखना ख़याल।
वो रख रही है।

इतना तो मुझे मेरी माँ ने नहीं सताया।
मुँह सूंघ कर चेक करती है,
कि पिज़्ज़ा तो नहीं खाया।

हमने कहा,
निरीह बालक,
पर रोज़ पालक।

वो बोला,
पिछले हफ़्ते उसने कहा था।
थोड़ा धनिया ले आना।

मैं धनिये की,
ले गया पाँच पत्ती।
उसने लगा दी मेरी बत्ती।

कहने लगी,
धिक्कार है तुम्हारी सोच पर।
बेकार तुम्हारी जवानी है।

धनिये से,
सर्जिकल स्ट्राइक नहीं करनी है।
चटनी बनानी है।

मैंने डिसाइड किया।
कि गलती नहीं दोहराऊँगा।
थोड़ा बोलेगी तो भी ज़्यादा लाऊँगा।

पिछले हफ़्ते,
उसने मंगाई थी पालक।
पाँच किलो ले आया आपका बालक।

बस उसी जुर्म की सजा पा रहा है।
पिछले पाँच दिन से,
सुबह शाम पालक खा रहा है।

 

स्मार्ट लुक

क्रोध से धरती फटी।
काँप उठी हर चीज़।
जब हमने अलमारी खोली।
ग़ायब थी हमारी फ़ेवरेट क़मीज़।

यहाँ देखा, वहाँ देखा।
छान मारा घर का हर एक कोना।
और तो और,
सोशल मीडिया पर ट्रेंड करना लगा,
हमारी क़मीज़ का खोना।

पत्नी बोली,
क्यों इस बात को इतना उछाल रहे हो।
बिना मतलब आग में घी डाल रहे हो।

हमने कहा,
ये हमारे आत्म सम्मान पर आघात है।
ये राष्ट्रीय सुरक्षा की बात है।
हम क़सम खाते हैं कि हालात सुधारेंगे।
घुसपैठियों को घर में घुस के मारेंगे।

हमारा बी॰पी॰ हो गया हाई।
पत्नी ने सर पे बर्फ़ लगाई।

पत्नी बोली,
ऐसी बातें मत करो अवोभूत।
तुम्हारी शर्ट पहन के गया है,
तुम्हारा अपना सपूत।

ग़ुस्से का करो द एंड।
जब बाप का जूता, बेटे को आने लगे,
तो बेटा बन जाता है फ़्रेंड।

हमने कहा,
देवी, ग़ुस्सा नहीं है।
हो रही है चिंता।
हमें अपने गिने चुने कपड़ों का स्टॉक,
दिख रहा है छिनता।

पत्नी बोली,
ओ मेरी चिंता की दुकान।
बिना मतलब के हो रहे हो हैरान।

डोंट हिट द बॉल,
वेन बॉल इज वाइड।
ऑल्वेज़ लुक ऐट,
द पॉज़िटिव साइड।

तुम्हारा शर्ट उसको आ रहा है।
तो उसका शर्ट तुमको भी आयेगा।
आज तुम्हारे कपड़ों पे हाथ मारा है।
कल वो तुमसे अपने कपड़े बचाएगा।

हमने अपनी पत्नी का,
आइडिया किया लाइक।
और बेटे के कपड़ों पे,
कर दी सर्जिकल स्ट्राइक।

हमारा बेटा अब तक,
इस शॉक से उबर नहीं पाया है।
कि उसके बाप ने,
उसके कपड़ों पे क़ब्ज़ा जमाया है।

और यही कारण है,
कि हम लग रहे स्मार्ट बड़े हैं।
क्योंकि हम आज,
बेटे के कपड़े पहन के खड़े हैं।