कभी कभी- ऐसा कोई घर आपने देखा है अज्ञेय- सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन “अज्ञेय”-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Sachchidananda Hirananda Vatsyayan Agyeya,
#1.
दिन जो रोज़ डूबते हैं
बीतते हैं
कभी कभी
घड़े जो रोज़ छलकते, रीतते हैं
भरते हैं
#.2
नियति जो बारती है लाखों घड़ी-घड़ी
देती है दमड़ी भर दान
कभी कभी
मैं जो मानता हूँ कि अपने को ख़ूब जानता हूँ
पाता हूँ अपनी ही पहचान
कभी कभी
मैं ने लिखा बहुत तुम्हारे लिए
पर सचाई की तड़प में किया याद
कभी कभी
पागल तो हूँ, सदा रहा तुम्हारे लिए
पाया पर वासना से परे का उन्माद
कभी कभी।