कब को भालै घुंघरू ताला-गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji
कब को भालै घुंघरू ताला कब को बजावै रबाबु ॥
आवत जात बार खिनु लागै हउ तब लगु समारउ नामु ॥१॥
मेरै मनि ऐसी भगति बनि आई ॥
हउ हरि बिनु खिनु पलु रहि न सकउ जैसे जल बिनु मीनु मरि जाई ॥१॥ रहाउ ॥
कब कोऊ मेलै पंच सत गाइण कब को राग धुनि उठावै ॥
मेलत चुनत खिनु पलु चसा लागै तब लगु मेरा मनु राम गुन गावै ॥२॥
कब को नाचै पाव पसारै कब को हाथ पसारै ॥
हाथ पाव पसारत बिलमु तिलु लागै तब लगु मेरा मनु राम सम्हारै ॥३॥
कब कोऊ लोगन कउ पतीआवै लोकि पतीणै ना पति होइ ॥
जन नानक हरि हिरदै सद धिआवहु ता जै जै करे सभु कोइ ॥੪॥੧੦॥੬੨॥੩੬੮॥