कई- रंग।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,

कई- रंग।-राही चल : अनिल मिश्र प्रहरी (Anil Mishra Prahari)| Hindi Poem | Hindi Kavita,

विधिना तेरे वृहत् विश्व का
रंग अजीब निराला है,
कहीं वृष्टि मोती की झरझर
खाली कहीं निवाला है।

कहीं विश्व के कोष चमकते
क्रूर, अभय नर मतवाला,
दीन-हीन नर के हिस्से में
बचता है खाली प्याला।

शिशुओं की साँसें रुक जातीं
वृद्ध रोग से मर जाते,
इनके हिस्से की माया से
कोष किसी के भर जाते।

कौन किसे अब रोके -टोके
मौन बने सब अधिकारी,
बेकल जनता किसको बोले
सुनने वाला व्यभिचारी।

सत्ता की गलियों में बैठा
दर्प कहाँ सुनने वाला,
जश्न मनाते लोग पुकारें
पैमाने में भर हाला।

एक हुई, दो – बोतल खाली
दफ्तर मानो मयखाना,
बाहर ठंडी रात बिताती
बुढ़िया माँगे दो – दाना।

अंचल की दुर्दशा, फटा
बाहर को दाने झाँक रहे,
दफ्तर के बाहर युवक
हो पंक्तिबद्ध रज फाँक रहे।

मिली नहीं है धरा जिन्हें
कहते अम्बर में उड़ जाना,
भूखी जनता माँग रही है
पहले दो उनको दाना।