उनसे कहो-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill

उनसे कहो-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill

 

उनसे कहो
हमें न बेंचे सारागढ़ी* का मैदान।
युद्ध कह कर गुलामी का सामान।
केसरिया पुड़िया में बँधा चुनाव निशान।

हमें सब पता है
किले कभी लोगों के नहीं होते।
किलों में कौन बैठता है
तख़्तनशीं होकर।

यह सच है सूरज जितना
कि किले के रखवाले
योद्धे पुत्र हमारे हैं।

झोरड़ा का ईश्वर सिंह गिल होवे
या किसी और गाँव से
गरीब घर का जाया।
फौज़ में रोटी कमाने आया।
फिरंगी राज का ताबेदार
बंदूकधारी तैयार बर तैयार।

सारागढ़ी का किला हमारा नहीं था।
वह तो नागों की बांबी थी।
जो हमें ही डस गई।
हमारे तो सिर्फ़ वह पठान भाई-बंधु थे,
जिनको फिरंगी नाग
रात दिन डसते थे।
स्वाभिमानी पुत्रों को
रोज़ शूली पर टाँगते थे।
बागियों के बच्चे
मुँह से पानी पानी माँगते थे।

स्वाभिमानी दिलेरों के लिए
हक़ और इंसाफ़ माँगते
धरती पुत्र शेरों को
ताज़ के रखवाले बन
घेर घेर मारना
सिखों का व्यवहार नहीं।

कुल्हाड़ी राजभाग थी,
हम बेंट थे
अपने भाइयों को
धरती के चावों को
मारना बताओ
कहाँ लिखा बहादुरी।

*सारागढ़ी किला जहाँ मात्र 21 सिख सैनिक 10000
अफ़गानियों से घिर कर 12 सित. 1857 के युद्ध में शहीद हो गए।

 

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