आसिफा* तू न जगा-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
आसिफा तू न जगा!
सोने दे हमें अभी।
खलल न डाल निद्रा में
क्यों भूल गई है मस्जिद बाँग देनी।
गुरुद्धारे से वाक् क्यों सुनाई देता नहीं।
मंदिरों में देवता घड़ियाल चुप है।
लगती है तू बहुत बड़ा धर्मसंकट
वर्जित जीभों के सम्मुख।
बेचारा तेरा बाबुल
तुझे खोजता फिर रहा है।
धर्मशाला की दहलीज़ से लौट आया है।
वहाँ तू जाती नहीं!
क्या पता था उसके भीतर जाकर तू लौटी नहीं।
बन गई है पत्थरों के बीच एक मूरत।
जागती न ही जीवित शक्ल सूरत।
जा री बेटी! मरने के बाद
हमारी आवश्यकताओं में तू
शामिल नहीं हुई अभी।
न तू भारत मात है।
न गऊ की जात है।
क्यों बचाइए तेरी चुन्नी?
न तू अभी वोट है
हमारी सूची में अभी
तक तू चिड़िया न बोट1 है।
आसिफा तू जिस्म है मासूम यद्यपि,
पर तू है भोग्या दानवों के ख़ातिर।
मरने के बाद आँसू बन कर
तू किसी कविता में कुछ दिन
बहुत चीखेगी ज़रूर।
तेरे आगे तेरे पीछे
आसिफ़ा यद्यपि मलाला,
किरनजीतें धक्के खाती हैं।
हुक्मरानी ने नशे में
हमारी यह गाढ़ी नींदें
बेटी यूं न खुल पाती हैं।
यह जो लड़का है पंजाबी चित्रकार
मैंने देखा चित्र तेरा बना रहा है।
सुर्ख हाथों से ठप्पे
कोरी कैनवास पर लगा रहा है।
अंधों के देश में
गुरुप्रीत क्या इशारे कर रहा है।
गूँगों की जीभ पर वर्जनाएँ
बोलते नहीं बेज़बान।
बहुत बड़ा इम्तहान।
चीख न कराह, सोने दे हमें अभी।
मंदिरों के घंटे यदि शांत हैं।
देवियों को शर्म नहीं।
देवते आँखों पर पट्टी बाँध बैठे,
हमें भी तू न बुला।
सपनों में रोती,
मासूम बिटिया लौट जा।
अभी चुनावों में शेष है समय।
तेरी व्यथा उस समय
ज़रूरत मुताबिक फिर गढ़ेंगे।
चुनाव के मैदान में जब लड़ेंगे।
आँखों से
मगरमच्छी आँसू बहाने के बाद
हिंदू मुस्लिम रंग में डुबोएँगे तेरी व्यथा।
चहुँ ओर पसर जाएगी सियासत की कथा।
आसिफा तू न जगा, सोने दे हमें अभी।
नींद में खलल न डाल,
रात के आगोश में सूरज न जगा,
मुझे नहीं उठना अभी।
आग अभी तो जली केवल कठुए,
जलाए स्वर्ग के द्वार।
न आई बेटी अभी हमारे द्वार।
धर्म और इख़लाक हैं सोए अभी।
बोटियों को नोच रहे कुत्ते अभी।
चोरों के हमराज हुए पहरेदार।
फर्ज़ करके दरकिनार।
होशियार! खब़रदार!
कच्ची नींद से हमें न जगा।
रात के आगोश में, सोए रहने दे।
मुल्क को कुत्ते प्यारे, रहने दे।
दर्द को न जीभ लगा।
नींद में खलल न डाल।
न जगा भाई न जगा।