आप भी अँधे हैं-गुरभजन गिल-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Gurbhajan Gill
उड़ीसा से पंजाब
कमाने आए
अनपढ़ प्रवासी मजदूर ने
चीखकर ललकारते हुए कहा
सारे देश की तरह
आप भी अँधे हैं साहब!
देखते ही नहीं हकीकत!
मेरे कंधे पर
मेरी बच्ची की लाश नहीं थी
बिकाऊ लोकतंत्र था
हर पाँच वर्ष बाद
जो नीलाम होता है कबाड़ मंडी में
हम-आप सब बिकते हैं
भुला कर फ़र्ज़
छोटी-छोटी जरूरतों के लिए
खरीदने वाले बोली लगाते हैं
ऊंची बोली लगाकर
ले जाते हैं कसाई के द्वार।
भूल-भाल कर पुराने मालिक
नए-ओं को बुलाते हैं।
लूटो-मारो,
हम फिर तैयार हैं।
मेरे कंधों पर
हर बार
कोई न कोई लाश ही क्यों होती है
आपने कभी नहीं पूछा?
किधर जा रहा था
यही न
आप तो सब जानते-समझते हैं
लाश सिर्फ जाती है मसान को
पर
नहीं जानते
कि
आती कहाँ से है?
मैं बताता हूँ-
छोटी ज़ेब वाले
इलाज न करवा सकने वाले घरों से आती हैं
जहाँ मैं बहुत अकेला हूँ।
बेटी की लाश
कंधे पर उठा
मसान को जा रहा हूँ
अपने, आपके सब के
प्यारे वतन की तरह खामोश।
चाबुक पड़ रहे हैं।
हम बे-रोकटोक चल रहे हैं।
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