आपे धरती साजीअनु-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

आपे धरती साजीअनु-श्लोक -गुरू राम दास जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Ram Das Ji

आपे धरती साजीअनु आपे आकासु ॥
विचि आपे जंत उपाइअनु मुखि आपे देइ गिरासु ॥
सभु आपे आपि वरतदा आपे ही गुणतासु ॥
जन नानक नामु धिआइ तू सभि किलविख कटे तासु ॥2॥302॥