आखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखि-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

आखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखि-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji

आखणि अउखा सुनणि अउखा आखि न जापी आखि ॥
इकि आखि आखहि सबदु भाखहि अरध उरध दिनु राति ॥
जे किहु होइ त किहु दिसै जापै रूपु न जाति ॥
सभि कारण करता करे घट अउघट घट थापि ॥
आखणि अउखा नानका आखि न जापै आखि ॥२॥
(1239)॥