आकांक्षा का तूफ़ान-बांग्ला कविता(अनुवाद हिन्दी में) -शंख घोष -Hindi Poetry-कविता-Hindi Poem | Kavita Shankha Ghosh
इस गहन निस्पंद निर्जनता में
अँधेरी साँझ की अजस्र निःसंग हवा में
तुम उठाओ —
बादल की तरह शीतल, चाँद की तरह विवर्ण
अपना सफ़ेद ज़र्द चेहरा
विराट आकाश की ओर!
दूर देश में काँप उठा हूँ मैं
आकांक्षा के असह्य आक्षेप से —
तुम्हारे चेहरे के सफ़ेद पत्थर को घेर काँप रहे हैं
आर्तनाद, प्रार्थना की अजस्र उँगलियों की तरह क्षीण
घुँघराले बाल
अँधेरी हवा में!
बादलों के आकाश में
कोई पुंज भारी हो उठा है
और उसके बीच
इच्छा की विद्युल्लता तेज़ी से झलक जाती है बारम्बार
प्रचंड वेग से फट पड़ना चाहती है
प्रेम की अशांत लहर
अस्थिर कर देता है अंधकार का निस्सीम व्यवधान
मग्न थिर मिट्टी की सघन कांति।
तुम थामे रहो —
बादलों-सा शीतल, चाँद-जैसा विवर्ण अपना चेहरा
रो-रोकर क्लान्त मूल मिट्टी की लहर-जैसे स्तन
प्रार्थना में अवसन्न व्याकुल जीर्ण
दीर्घ प्रत्याशा का हाथ
उसी विक्षुब्ध विराट आकाश की ओर —
और उसे घेरता हुआ अंधकार — बिखरते केश
निस्सीम निस्संग हवा में अजस्र स्वरों के वाद्य!
धीरे-धीरे तत्पर यह सृष्टि
जिस तरह मधुरतम क्षणों में
वज्र बनकर टूट पड़ता है उसकी आकांक्षा का मेघ
तुम्हारी उद्धत उत्सुक विदीर्ण छाती के बीचोंबीच
मिलन की संपूर्ण कामना के साथ!
इसके बाद
भीगी अस्त-व्यस्त
इस भग्न पृथ्वी का कूड़ा-करकट बुहारती हुई
आए सुंदर, शीतल, ममतामयी सुबह!!