अहले-ग़म जाते हैं नाउम्मीद तेरे शहर से-दर्द आशोब -अहमद फ़राज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Ahmed Faraz,
अहले-ग़म जाते हैं ना-उम्मीद तेरे शह्र से
जब नहीं तुझसे तो क्या उम्मीद तेरे शह्र से
दीदनी थी सादगी उनकी जो रखते थे कभी
ऐ वफ़ा-ना-आश्ना उम्मीद तेरे शह्र से
तेरे दीवानों के हक़ में ज़ह्रे-क़ातिल हो गई
ना-उमीदी से सिवा उम्मीद तेरे शह्र से
पा-ब-जौलाँ दिल-गिरफ़्ता फिर रहे हैं कू-ब-कू
हम जो रखते थे सिवा उम्मीद तेरे शह्र से
तू तो बेपरवा ही था अब लोग भी पत्थर हुए
या हमें तुझसे थी या उम्मीद तेरे शह्र से
रास्ते क्या-क्या चमक जाते हैं ऐ जाने-‘फ़राज़’
जब भी होती है ज़रा उम्मीद तेरे शह्र से
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