अफ़्रीका कम बैक-ज़िन्दां-नामा-फ़ैज़ अहमद फ़ैज़-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Faiz Ahmed Faiz
(एक रजज़)
आ जाओ, मैंने सुन ली तिरे ढोल की तरंग
आ जाओ, मस्त हो गई मेरे लहू की ताल
“आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा”
आ जाओ, मैंने धूल से माथा उठा लिया
आ जाओ, मैंने छील दी आँखों से ग़म की छाल
आ जाओ, मैंने दर्द से बाजू छुड़ा लिया
आ जाओ, मैंने नोच दिया बेकसी का जाल
“आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा”
पंजे में हथकड़ी की कड़ी बन गई है गुर्ज़
गर्दन का तौक़ तोड़ के ढाली है मैंने ढाल
“आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा”
जलते हैं हर कछार में भालों के मिरग-नैन,
दुश््मन लहू से रात की कालिख हुई है लाल
“आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा”
धरती धड़क रही है मिरे साथ, ऐफ़्रीक़ा
दरिया थिरक रहा है तो बन दे रहा है ताल
मैं ऐफ़्रीक़ा हूँ, धार लिया मैंने तेरा रूप
मैं तू हूँ, मेरी चाल है तेरी बबर की चाल
“आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा”
आओ, बबर की चाल
आ जाओ, ऐफ़्रीक़ा
मिंटगुमरी जेल, १४ जनवरी १९५५