अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु-सलोक-गुरु नानक देव जी-Hindi Poetry-हिंदी कविता -Hindi Poem | Hindi Kavita Guru Nanak Dev Ji
अंदरहु झूठे पैज बाहरि दुनीआ अंदरि फैलु ॥
अठसठि तीरथ जे नावहि उतरै नाही मैलु ॥
जिन्ह पटु अंदरि बाहरि गुदड़ु ते भले संसारि ॥
तिन्ह नेहु लगा रब सेती देखन्हे वीचारि ॥
रंगि हसहि रंगि रोवहि चुप भी करि जाहि ॥
परवाह नाही किसै केरी बाझु सचे नाह ॥
दरि वाट उपरि खरचु मंगा जबै देइ त खाहि ॥
दीबानु एको कलम एका हमा तुम्हा मेलु ॥
दरि लए लेखा पीड़ि छुटै नानका जिउ तेलु ॥२॥(473)॥
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