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मैं ओशो का सन्यासी हूँ
गीता भी पढ़ा हूँ, गालीब को भी पढ़ा हूँ.
क्या फर्क पड़ेगा ?
शायरी हो या कुछ संगीत बज रहा हो
जो मनभावन हो, ईश्वर की याद दिलाता हो,
मैं उस दशा में खो जाता हूँ https://t.co/FDeTr7ymsC
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Source by Mahesh Mehta