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बंद दरवाज़े थे…लेकिन इक खुली खिड़की मिली
मुद्दतों के बाद आख़िर फिर झलक उसकी मिली
जिस्म से तो लम्स सारे ही खुरच डाले…मगर
रूह की तलहट्टियों में इक छुअन ठिठकी मिली
~गौतम राजऋषि
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Source by गौतम की कलम से