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इश्क़ का होना भी लाजमी है शायरी के लिए वरना
.
कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी गालिब होता
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Source by saurabh misra
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इश्क़ का होना भी लाजमी है शायरी के लिए वरना
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कलम लिखती तो दफ्तर का बाबू भी गालिब होता
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