होरी-शाह शरफ़

होरी-शाह शरफ़

होरी

होरी आई फाग सुहाई बिरहुं फिरै निसंगु ।
उड रे कागा देसु सुदच्छन कबि घरि आवै कंत ।१।

होरी को खेलै को खेलै जां के पिया चले परदेसु ।१।रहाउ।

होरी खेलनि तिन कउ भावै जिन के पिया गल बाहिं ।
हउ बउरी होरी कै संगि खेलऊं हम घरि साजन नाहिं ।२।

अन जानत पिया गवन कियो री मैं भूली फिरउ निहोरी ।
नैन तुम्हारे रिदे चुभे रहे मैं तनि नाहिं सतिओ री।३।

जान बूझ पिया मगनि भए हैं बिरहु करी बिधंसु ।
शाह शरफ़ पिया बेग मिलउ होरी खेलऊं मैं अनन्द बसंतु ।४।

(राग किदारा)

काफ़ी होरी

होरी मैं कैसे खेलों रुति बसंत,
मैं पावोंगी साजन करों अनन्द ।१।रहाउ।

जब की भई बसंत पंचमी,
घरि नाहिं हमारो अपनो कंत ।१।

अउध बीती पिया अजहुं न आए,
हउ खरी निहारों पिया पंथि ।२।

खान पान मोहि कछु न भावे,
चिति फसिओ मोहि प्रेम फंधि ।३।

शाहु शरफ़ पिया प्यारे बाझहु,
जैसे चकोर है बिन चन्दु ।४।

(राग बसंत)