खेलूंगी कभी न होली-सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
खेलूंगी कभी न होली
उससे नहीं जो हमजोली।
यहां आंख कहीं कुछ बोली
यह हुई श्याम की तोली
ऐसी भी रही ठिठोली।
गाढ़े-रेशम की चोली-
अपने से अपनी धो लो,
अपना घूंघट तुम खोलो,
अपनी ही बातें बोलो,
मैं बसी परायी टोली ।
जिनसे होगा कुछ नाता,
उनसे रह लेगा माथा,
उनसे हैं जोड़ू-जांता,
मैं मोल दूसरे मोली ।
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