कविता होली पर-नज़ीर अकबराबादी part 4

कविता होली पर-नज़ीर अकबराबादी part 4

जब आई होली रंग भरी

जब आई होली रंग भरी, सो नाज़ो-अदा से मटकमटक।
और घूंघट के पट खोल दिये, वह रूप दिखाया चमक-चमक।
कुछ मुखड़ा करता दमक-दमक कुछ अबरन करता झलक-झलक।
जब पांव रखा खु़शवक़्ती से तब पायल बाजी झनक-झनक।
कुछ उछलें, सैनें नाज़ भरें, कुछ कूदें आहें थिरक-थिरक॥1॥

यह रूप दिखाकर होली के, जब नैन रसीले टुक मटके।
मंगवाये थाल गुलालों के, भर डाले रंगों से मटके।
फिर स्वांग बहुत तैयार हुए, और ठाठ खु़शी के झुरमुटके।
गुल शोर हुए ख़ुश हाली के, और नाचने गाने के खटके।
मरदंगें बाजी, ताल बजे, कुछ खनक-खनक कुछ धनक-धनक॥2॥

पोशाक छिड़कवां से हर जा, तैयारी रंगी पोशों की।
और भीगी जागह रंगों से, हर कुंज गली और कूचों की।
हर जागह ज़र्द लिबासों से, हुई ज़ीनत सब आगोशों की।
सौ ऐशो-तरब की धूमें हैं, और महफ़िल में मै नोशों की।
मै निकली जाम गुलाबी से, कुछ लहक-लहक कुछ छलक-छलक॥3॥

हर चार तरफ़ खु़शवक़्ती से दफ़ बाजे, रंग और रंग हुए।
कुछ धूमें फ़रहत इश्रत की, कुछ ऐश खु़शी के रंग हुए।
दिल शाद हुए ख़ुशहाली से, और इश्रत के सौ ढंग हुए।
यह झमकी रंगत होली की जो देखने वाले दंग हुए।
महबूब परीरू भी निकले कुछ झिजक-झिजक कुछ ठिठक-ठिठक॥4॥

जब खू़बां आये रंग भरे, फिर क्या-क्या होली झमक उठी।
कुछ हुश्न की झमकें नाज़ भरीं, कुछ शोख़ी नाज़ अदाओं की।
सब चाहने वाले गिर्द खड़े, नज़्ज़ारा करते हंसी खु़शी।
महबूब नशे की खू़बी में, फिर आशिक़ ऊपर घड़ी-घड़ी।
हैं रंग छिड़कते सुखऱी के, कुछ लपक-लपक कुछ झपक-झपक॥5॥

है धूमख़ुशी की हर जानिब, और कसरत है खु़श वक़्ती की।
हैं चर्चे होते फ़रहत के, और इश्रत की भी धूम मची।
खूंबां के रंगीं चेहरों पर हर आन निगाहें हैं लड़तीं।
महबूब भिगोएं आशिक़ को, और आशिक़ हंसकर उनको भी।
खु़श होकर उनको भिगोवें हैं, कुछ अटक-अटक कुछ हुमक-हुमक॥6॥

वह शोख़ रंगीला जब आया, यां होली की कर तैयारी।
पोशाक सुनहरी, जेब बदन, और हाथ चमकती पिचकारी।
की रंग छिड़कने से क्या-क्या, उस शोख़ ने हरदम अय्यारी।
हमने भी ”नज़ीर“ उस चंचल को, फिर खू़ब भिगोया हर बारी।
फिर क्या-क्या रंग बहे उस दम कुछ ढलक-ढलक कुछ चिपक-चिपक॥7॥

होली की रंग फ़िशानी से है रंग यह कुछ पैराहन का

होली की रंग फ़िशानी से है रंग यह कुछ पैराहन का।
जो रंगारंग बहारों में हो सहन चमन और गुलशन का।

जिस खू़बी और रंगीनी से गुलज़ार खिले हैं आलम में।
हर आन छिड़कवां जोड़ों से है हुश्न कुछ ऐसा ही तनका।

ले जाम लबालब भर दीना फिर साक़ी को कुछ ध्यान नहीं।
यह साग़र पहुंचे दोस्त तलक या हाथ लपक ले दुश्मन का।

हर महफ़िल में रक़्क़ासों का क्या सिहर दिलों पर करता है।
वह हुश्न जताना गानों का, और जोश दिखाना जीवन का।

है रूप अबीरों का महवश और रंग गुलालों का गुलगूं।
हैं भरते जिसमें रंग नया, है रंग अजब इस बर्तन का।

उस गुल गूं ने यूं हम से कहा, क्या मस्ती और मदहोशी है।
ना ध्यान हमें कुछ चोली का, ना होश तुम्हें कुछ दामन का।

जब हमने ”नज़ीर“ उस गुलरू से यह बात कही हंसकर उस दम।
क्या पूछे है, ऐ! रंग भरी है मस्त हसीना फागुन का।

सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में

सनम तू हमसे न हो बदगुमान होली में।
कि यार रखते हैं यारों का मान होली में॥
वह अपनी छोड़ दे अब ज़िद की आन होली में।
हमारे साथ तू चल महरबान होली में।
फिर तेरी घट न जावेगी शान होली में॥1॥

ज़रा तू घर से निकल देख कु़दरते अल्लाह।
कि रंग में भीग रहे हैं तमाम माहियो-माह॥
खड़े हैं पीरो जवां तिफ्ल नाजनीं सरे राह।
किसी की सुर्ख है पगड़ी किसी की ज़र्द कुलाह॥
खुशी से मस्त है यक्सर जहान होली में॥2॥

नशे में कितने तो माशूक हैंगे मतवाले।
जल्वे उनके हज़ारों हैं देखने वाले॥
किसी के हाथ में शीशे किसी के हैं प्याले।
किसी ने हाथ किसी के गले में हैं डाले॥
करे हैं ऐश सभी मैकशान होली में॥3॥

कोई तो बांधे है दस्तार गुलनारी।
किसी के हाथ में हैंगा गुलाल पिचकारी॥
किसी की रंग में पोशाक ग़र्क है सारी।
किसी के गाल पे है सुर्ख़ रंग की धारी॥
अजब बहार जो ठहरी है आन होली में॥4॥

कहीं जो देखा तो है नाज़नीं बहुत चंचल है।
कि जिसको देखके आशिक का दिल न पावै कल॥
गले और बाजू में पहने हैं नौरतन हैकल।
चले जो राह कमर में पड़े हैं सौ सौ बल॥
है इस तरह का वह नाजु़क मियान होली में॥5॥

तमाम शहर में हरसू मची हैं रंगरलियां।
गुलाल अबीर से गुलज़ार हैं सभी गलियां॥
कोई किसी के साथ कर रहा है अचपलियां।
गरज़ कि ज़ोर हवाएं हैं ऐश की चलियां॥
किसी को ऐश सिवा कुछ न ध्यान होली में॥6॥

‘नज़ीर’ होली तो हरजा हो रही होगी।
पर हमने सैर यह इक बाग़ में अजब देखी॥
दीवारें बाग़ की यक्सर सुनहरी नक़्क़ाशी।
और उनके बीच में एक नौबहार बारहदरी॥
ज़री का उसमें खिंचा सायवान होली में॥7॥

हर एक ने अपने मुआफ़िक़ दिया है फ़र्श बिछा।
खु़शी से बैठा हुआ सैर बाग़ की करता॥
है भीड़ भाड़ का अब इस ज़हूर का चर्चा।
कि बीच बाग़ के तिल धरने को नहीं है जा॥
रहा था न कोई खाली मकान होली में॥8॥

हुई है किसी परविश मुखविचों की दुकान।
तरह तरह की शराबों का किया सामान॥
कोई कहे है कि मेरी गुलाबी भर दे जान।
रुपया अशर्फी का इस क़दर है वारान॥
कि वह दुकान हुई ज़र की खान होली में॥9॥

और कितने ऐसे हैं सूरत के उनके मतवाले।
कि उनकी आंखसे पीते हैं दम बदम प्याले॥
कहते हैं ‘हाय’ ‘हाय’ रे इन ज़ालिमों ने घर गाले।
कहीं हज़ारों व लाखों हैं देखने वाले॥
खड़े हैं सामने घेरे दुकान होली में॥10॥

हज़ारों खोमचे वाले फिर हैं लालो लाल।
पुकारते हैं मिठाई है और मोंठ की दाल॥
तमोली बैठे हैं बीड़ों में अपना मुंह कर लाल।
कोई पुकारे है क्या ज़ोर है नशे रंग लाल॥
कोई नशा, कोई खाता है पान होली में॥11॥

कोई तो हुस्न में अपने कहे हैं गुलशन हूं।
कोई बहार दिखाकर कहे हैं लालन हूं॥
लुभा के दिल के और बोला कि मैं तो मोहन हूं।
कोई पुकारे है आशिक मैं बामन हूं॥
दिलाओ अब कोई बोसे का दान होली में॥12॥

कोई किसी के ऊपर लाल घड़ा छुड़ाता है।
कोई गुलाल किसी के मुंह पे फेंक जाता है॥
कोई किसी के नई गालियां सुनाता है।
मुआफ़िक अपने हरेक होली को मनाता है॥
गरज़ कि दोनों ही की है आन बान होली में॥13॥

होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां

होली हुई नुमायां सौ फ़रहतें सभलियां।
डफ बजने लागे हरजां, और इश्रतें और छलियां॥
बातें हंसी खु़शी की, हर लब से फिर निकलियां।
मै के नशों ने हरदम तर्जे़ खुर्द की छलियां॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥1॥

पड़ने से रंग हर जां आपस में यार भीगे।
गुलशोर भी मचाए और बार-बार भीगे॥
रंगत के जो खड़े थे उम्मीदवार भीगे।
आशिक भी तरवतर है और गुल इज़ार भीगे॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥2॥

कुछ ठाठ आके ठहरे कुछ स्वांग रूप चमके।
कुछ गिर्द उनके खुश हो अम्बोह आन धमके॥
अश्शाक़ में भी हरदम रंग उल्फ़तों के दमके।
खू़ंबा के भी हर इक जा हुस्नोजमाल झमके॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥3॥

देखो जिधर उधर को है सैर और तमाशा।
कुछ नाचने के खटके कुछ राग रंग ठहरा॥
ठठ्ठे हंसी के चर्चे ऐशो तरब का चर्चा।
सौ सौ बहारें चुहलें आई नज़र अहा हा॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥4॥

हैं रंग साथ लेकर आपस में यार फिरते।
आया जो उनके आगे खूब उसपे रंग छिड़के॥
कोई किसी से भागें कोई किसी को पकड़े।
भीगे बदन सरापा मुंह लाल ज़र्द कपड़े॥
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥5॥

होती हैं चुहलें क्या क्या नाज़ो अदा की भीगें।
मुंह पर गुलाल, भोंहैं उस आश्ना की भीगें।
जुल्फ़ें भी रंग से हैं हर दिलरुवा की भीगें।
पोशाके़ं बदन में हर दिलरुवा की भीगें।
रंग औ गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥6॥

हैं रंग से जो भीगे महबूब हुस्न वाले।
हंसते हैं सब खु़शी से बांहें गले में डाले॥
कपड़े छिड़कवां उनके हर दिल को खुश हैं आते।
मुखड़े हैं जगमगाते तुर्रे हैं झमझमाते॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥7॥

होली की यारो क्या-क्या कहने में आती खूबी।
कुछ ज़ोर ही मजे़ की हरदम बहार देखी॥
सुनते ही आए क्या! क्या! बातें हंसी खुशी की।
आगे ‘नज़ीर’ अब तो क्या कहिए वाह! वाह! जी॥
रंग और गुलाल पड़के रंगी हुई हैं गलियां।
दिखलाई अपनी क्या-क्या होली ने रंग रलियां॥8॥

 जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली

जो ज़र्द जोड़े से ऐ यार! तू खेले होली।
आके मुखड़े की बलाएं अभी ले ले होली॥

रात छाती से लिपट रंग छिड़क मल के गुलाल।
क्या हम शोख़ से खेले हैं ले ले होली॥

गालियां देते हैं और मलते हैं कीचड़ मुंह पर।
तुम से ऐ यार! जो भड़ुआ हो सो खेले होली॥

पहन कर आते हैं यह गुलरू जो छिड़कवां जोड़े।
उनका आशिक़ जो कोई हो वही खेले होली॥

सब तो हैं आशिक़ माशूक़ व लेकिन प्यारे।
क्या मजे़ के वह दिखाती हैं झमेले होली॥

कहीं गाली कहीं झिड़की, कहीं कोहनी, कहीं लात।
सौ अदाओं के बहा देती है रेले होली॥

शुक्र है आज तो मुद्दत में बना रंग ‘नज़ीर’।
अपने हम यार से दिल खोल के खेले होली॥

उनकी होली तो है निराली जो हैं मांग भरी

उनकी होली तो है निराली जो हैं मांग भरी।
साथ फिरती हैं कई रंग भरी राग भरी।
अपनी होली तो उसी यार की है राग भरी।
जिसके दरवाजे़ पर बैठीं हैं कई फाग भरो।
आह के शोले हैं और सीने में है आग भरी।
हम फ़क़ीरों की सदा होली है बैराग भरी॥

छिड़कवां जोड़ा जो गुदड़ी का पड़ा भारी है।
जिस पर उस दीदयेखूंखार की गुलकारी है।
आंसू का रंग है और पलकों की पिचकारी है।
किसकी होली में भला कहिये ये तैयारी है॥

ये जो रो रो के हम करते हैं आँखों को लाल।
और हाथों से और आँखों से उड़ाते हैं गुलाल।
सामने रंग छिड़कता है खड़ा सर पर वह लाल।
दम के बजते हैं पड़े तबलाओं सारंगी ओ ताल॥

तन से टपके हैं पसीने के जो कतरात पड़े।
रंग यों बरसे हैं ज्यूं ख़ल्क में बरसात पड़े।
भीगे रंगों से जो दिलबर के गले हाथ पड़े।
होली उस यार से खेले हैं जो दिन रात बड़े॥

अपनी ही ख़ाक अबीरों की बंधी झोली है।
अपना ही रंग और अपना ही दिल रोली है।
अपने ही साथ हर एक बोली है और ठठोली है।
आप ही हँस हँस के पुकारे हैं खड़े होली है॥

आस को तोड़ दिया आस के फिर आस न पास।
रंग में रंग मुहब्बत का हमें आया हैरास।
अपने बेगाने का कुछ दिल में न खतरा न हिरास।
होली उस यार से खेलें हैं खड़े हो विश्वास॥

और तो पीते हैं होली में मिल मिल के शराब।
हम मुहब्बत के नशे में हैं हमेशा ग़रक़ाब।
चश्म के प्यालें हैं और आंसू की मै दिल के कबाब।
गम में पी-पी के लहू लोटें हैं नित मस्त खराब॥

है कढ़ाई धरी कर कासये सर के टुकड़े।
मैदा घी तेल शकर शान ओ बर के टुकड़े।
तकते हैं शामो-सहर करके कमर के टुकड़े।
क्याही पकवान उतरते हैं जिगर के टुकड़े॥

पूछता है जो कोई राहे मुहब्बत से आ।
तुमने सामान किया होली का अबके क्या क्या।
रंग ज़र्द अपना दिखा देते हैं उसको ये सुना।
देख ले आन के क्या पूछे है मुझसे बाबा॥

सब से हैं रूठ रहे हमने मनाई होली।
आपको खो दिया जब हमने मनाई होली।
दिल जिगर जोड़ कर मैदां में लगाई होली।
तन को होला किया तब हमने जलाई होली॥

तन को है ख़ाक किया होके मुहब्बत में असीर।
रात दिन उसका उड़ाते हैं गुलाल और अबीर।
ऐसी होली है उन्हीं की जो हैं दिलबर के फ़कीर।
साल भर अपने तो घर होली ही रहती है ‘नज़ीर’॥