कविता होली पर-नज़ीर अकबराबादी part 2
6. होली की बहार
हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।
एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।
जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब।
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।।
तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ।
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।
और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां।
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।।
नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम ‘नजीर’।
फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।।
जब खेली होली नंद ललन
जब खेली होली नंद ललन हँस हँस नंदगाँव बसैयन में।
नर नारी को आनन्द हुए खु़शवक्ती छोरी छैयन में॥
कुछ भीड़ हुई उन गलियों में कुछ लोग ठठ्ठ अटैयन में।
खु़शहाली झमकी चार तरफ कुछ घर-घर कुछ चौपय्यन में॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥1॥
हर जगह होरी खेलन की तैयारी सब रंग जतन।
अम्बोह हुए खुशवक्ती के और ऐश खुशी के रूप बरन।
पिचकारी झमकी हाथों में और झमके तन के सब अबरन॥
हर आन हर इक नर नारी से होरी खेलन लागे नंद ललन।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥2॥
कुछ बांधे साथ अबीर अपने कुछ रंग उठाए बर्तन में।
कुछ कूदें उछलें खुश होकर कुछ लपकें होरी खेलन में॥
कुछ रंगी सबके हाथ भरे कुछ कपड़े भीग रहे तन में।
हर वक्त खुशी हर आन हंसी सौ खूबी घर औ आंगन में।
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥3॥
नंदगांव में जब यह ठाठ हुए, बरसाने में भी धूम मची।
श्री किशन चले होली खेलन को ले अपने ग्वाल और बाल सभी॥
आ पहुंचे वट के बिरछन में हर आन खुशी चमकी झमकी।
वां आई राधा गोरी भी ले संग सहेली सब अपनी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥4॥
घनश्याम इधर से जब आए वां गोरी की कर तैयारी।
और आई उधर से रंग लिए खुश होती वां राधा प्यारी॥
जब श्याम ने राधा गोरी के इक भर कर मारी पिचकारी।
तब मुख पर छीटे आन पड़ी और भीज गई तन की सारी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥5॥
जब ठहरी लपधप होरी की और चलने लगीं पिचकारी भी।
कुछ सुर्ख़ी रंग गुलालों की, कुछ केसर की ज़रकारी भी॥
होरी खेलें हंस-हंस मनमोहन और उनसे राधा प्यारी भी।
यह भीगी सर से पांव तलक और भीगे किशन मुरारी भी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥6॥
जब देर तलक मनमोहन ने वां होरी खेली रंग भरी।
सब भीगी भीड़ जो आई थी साथ उनके ग्वालों बालों की॥
तन भीगा किशन कन्हैया का यों रंगों की बौछार हुई।
और भीगी राधागोरी भी और उनकी संग सहेली भी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥7॥
चर्चे चुहलें जब यों ठहरी खुशहाल हुए, दिल हर बारी।
कुछ आज ख़ुशी और खू़बी की कुछ बातें हुई प्यारी-प्यारी॥
यों होरी राधा प्यारी से जब हंस हंस खेले बनवारी।
वह रूप ‘नज़ीर’ आके झमके उन रूपों को हो बलिहारी॥
डफ बाजे, राग और रंग हुए, होली खेलन की झमकन में॥
गु़लशोर गुलाल और रंग पड़े हुई धूम कदम की छैयन में॥8॥
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आया
क़ातिल जो मेरा ओढ़े इक सुर्ख़ शाल आया।
खा-खा के पान ज़ालिम कर होंठ लाल आया।
गोया निकल शफ़क़ से बदरे-कमाल आया।
जब मुंह में वह परीरू मल कर गुलाल आया।
एक दम तो देख उसको होली को हाल आया।1॥
ऐशो तरब का सामां है आज सब घर उसके।
अब तो नहीं है कोई दुनियां में हमसर उसके।
अज़ माहताब माही बन्दे हैं बेज़र उसके।
कल वक़्ते शाम सूरज मलने को मुंह पर उसके।
रखकर शफ़क़ के सरपर तश्ते गुलाल आया॥2॥
ख़ालिस कहीं से ताज़ी एक जाफ़रां मंगाकर।
मुश्को-गुलाब में भी मल कर उसे बसाकर।
शीशे में भर के निकला चुपके लगा छुपा कर।
मुद्दत से आरजू थी इक दम अकेला पाकर।
इक दिन सनम पे जाकर में रंग डाल आया॥3॥
अर्बाबेबज़्म फिर तो वह शाह अपने लेकर।
सब हमनशीन हस्बे दिलख़्वाह अपने लेकर।
चालाक चुस्त काफ़िर गुमराह अपने लेकर।
दस-बीस गुलरुखों को हमराह अपने लेकर।
यों ही भिगोने मुझको यह खुशजमाल आया॥4॥
इश्रत का उस घड़ी था असबाब सब मुहय्या ।
बहता था हुस्न का भी उस जा पे एक दरिया।
हाथों में दिलबरों के साग़र किसी के शीशा ।
कमरों में झोलियों में सेरों गुलाल बांधा।
और रंग की भी भर कर मश्को-पखाल आया॥5॥
अय्यारगी से पहले अपने तई छिपाकर।
चाहा कि मैं भी निकलूं उनमें से छट छटाकर।
दौड़े कई यह कहकर जाता है दम चुराकर।
इतने में घेर मुझको और शोरो गुल मचाकर।
उस दम कमर-कमर तक रंगो गुलाल आया॥6॥
यह चुहल तो कुछ अपनी किस्मत से मच रही थी।
यह आबरू की पर्दा हिर्फ़त से बच रही थी।
कैसा समां था कैसी शादी सी रच रही थी।
उस वक़्त मेरे सर पर एक धूम मच रही थी।
उस धूम में भी मुझको जो कुछ ख़याल आया॥7॥
लाजिम न थी यह हरकत ऐ खुश-सफ़ीर तुझको।
अज़हर है सब कहे हैं मिलकर शरीर तुझको।
करते हैं अब मलामत खुर्दो-कबीर तुझको।
लाहौल पढ़ के शैतां, बोला ”नज़ीर“ तुझको।
अब होली खेलने का पूरा कमाल आया॥8॥
फिर आन के इश्रत का मचा ढंग ज़मी पर
फिर आन के इश्रत का मचा ढंग ज़मी पर।
और ऐश ने अर्सा है किया तंग ज़मीं पर।
हर दिल को खुशी का हुआ आहंग ज़मी पर।
होता है कहीं राग कहीं रंग ज़मीं पर।
बजते हैं कहीं ताल कहीं जंग ज़मीं पर॥
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥1॥
घुंघरू की पड़ी आन के फिर कान में झंकार।
सारंगी हुई बीन तंबूरो की मददगार॥
तबलों के ठुके तबल यह साज़ों के बजे तार।
रागों के कहीं गुल कहीं नाचां के बंधे तार॥
ढोलक कहीं झनकारे हैं मरदंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥2॥
इस रुत में चमन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
और जंगलो बन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
हर शोख के तन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
आशिक़ के बदन पर भी अजब रंग चढ़ा है।
सब ऐश के रंगों में हैं हमरंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥3॥
मारा है निपट होली के रंगों ने अजब जोश।
जो रंग में इक ख़ल्क बनी फिरती है गुलपोश।
है नाच कहीं, राग कहीं, रग कहीं जोश।
पीते हैं नशे ऐश में सब लोटे हैं मदहोश।
माजू कहीं पीते हैं कहीं भंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥4॥
मैख़ानों में देखो तो अजब सैर है यारो।
वां मस्त पड़े लोटे हैं और करते हैं हो! हो!।
मस्ती से सिवा ऐश नहीं होश किसी को।
शीशों में, प्यालों में, सुराही में खुशी हो।
उछले हैं पड़ी बाद-ए-गुलरंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥5॥
”गा गा“ की पुकारें हैं कहीं रंगों की छिड़क है।
मीना की भभक और कहीं सागर की झलक है।
तबलों की सदाएं कहीं तालों की झनक है।
ताली की बहारें कहीं ठिलिया की खड़क है।
बजता है कहीं डफ़ कहीं मुहचंग ॥6॥
मस्ती में उठा आंख जिधर देखो अहा! हा!
नाचे हैं तबायफ़ कहीं मटके है भवय्या।
चलते हैं कहीं जाम कहीं स्वांग का चर्चा।
और रंग की गलियों में जो देखो तो हर इक जा।
बहती हैं उमड़ कर जमनी गंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥7॥
मामूर है खू़बां से गली कूच ओ बाज़ार।
उड़ता है अबीर और कहीं पिचकारी की है मार।
छाया है गुलालों का हर इक जा पै धुआंधार।
पड़ती है जिधर देखो उधर रंग की बौछार।
है रंग छिड़कने से हर एक दंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥8॥
भागे हैं कहीं रंग किसी पर जो कोई डाल।
वह पोटली मारे है उसे दौड़ के फ़िलहाल।
यह टांग घसीटे है तो वह खींचे पकड़ बाल।
वह हाथ मरोड़े तो यह तोड़े है खड़ा गाल।
इस ढब के हर इक जा पे मचे ढंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥9॥
बैठे हैं सब आपस में नहीं एक भी कड़वा।
पिचकारी उठाकर कोई झमकावे है घड़वा।
भरते हैं कहीं मशक कहीं रंग का गड़वा।
क्या शाद वह होता है जिसे कहते हैं भड़वा।
सुनते हैं यहां तक नहीं अब नंग ज़मीं पर।
होली ने मचाया है अज़ब रंग ज़मीं पर॥10॥
मियां तू हमसे न रख कुछ गुबार होली में
मियां तू हमसे न रख कुछ गुबार होली में।
कि रूठे मिलते हैं आपस में यार होली में।
मची है रंग की कैसी बहार होली में।
हुआ है ज़ोरे चमन आश्कार होली में।
अजब यह हिन्द की देखी बहार होली में॥1॥
अब इस महीने में पहुंची हैं यां तलक यह चाल।
फ़लक का जामा पहन सुखऱी शफ़क़ से लाल।
बनाके चांद और सूरज के आस्मा पर थाल।
फरिश्ते खेले हैं होली बना अबीरो गुलाल।
तो आदमी का भला क्या शुमार होली में॥2॥
सुनाके होली जो जहरा बजाती है तंबूर।
तो उसके राग से बारह बरूज हैं मामूर।
छओं सितारों के ऊपर पड़ा है रंग का नूर।
सभों के सर पै हरदम पुकारती हैं हूर।
कि रंग से कोई मत कीजो आर होली में॥3॥
जो घिर के अब्र कभी इस मजे़ में आता है।
तो बादलों में वह क्या-क्या ही रंग लाता है।
खुशी से राँद भी ढोलक की गत लगाता है।
हवा की होलियां गा-गा के क्या नचाता है।
तमाम रंग से पुर है बहार होली में॥4॥
चमन में देखो तो दिन रात होली रहती है।
शराब नाब की गुलशन में नहर बहती है।
नसीम प्यार से गुंचे का हाथ गहती है।
और बाग़वान से बुलबुल खड़ी यह कहती है।
न छेड़ मुझको तू ऐ बदशिआर होली में॥5॥
गुलों ने पहने हैं क्या क्या ही जोड़े रंग-बिरंग।
कि जैसे लड़के यह माशूक पहनते हैं तंग।
हवा से पत्तों के बजते हैं ताल और मरदंग।
तमाम बाग़ में खेले हैं होली गुल के संग।
अजब तरह की मची है बहार होली में॥6॥
मजे़ की होती है होली भी राव राजों के यां।
कई महीनों से होता है फाग का सामां।
महकती होलियां गाती हैं गायनें खड़ियां।
गुलाल अबीर भी छाया है दर ज़मीनों ज़मां।
चहार तरफ़ है रंगों की मार होली में॥7॥
अमीर जितने हैं सब अपने घर में है खु़शहाल।
क़ब़ाऐं पहने हुए तंग तंग गुल की मिसाल।
बनाके गहरी तरह हौज़ मिल के सब फिलहाल।
मचाते होलियां आपस में ले अबीरो गुलाल।
बने हैं रंग से रंगी निगार होली में॥8॥
यह सैर होली की हमने तो ब्रज में देखी।
कहीं न होवेगी इस लुत्फ़ की मियां होली।
कोई तो डूबा है दामन से लेके ता चोली।
कोई तो मुरली बजाता है कह ‘कन्हैयाजी’।
है धूमधाम यह बेइख़्तियार होली में॥9॥
घरों से सांवरी और गौरियां निकल चलियां।
कुसुंभी ओढ़नी और मस्ती करती अचपलियां।
जिधर को देखें उधर मच रही है रंगरलियां।
तमाम ब्रज की परियों से भर रही गलियां।
मज़ा है, सैर है, दर हर किनार होली में॥10॥
जो कोई हुस्न की मदमाती गोरी है वाली।
तो उसके चेहरे से चमके हैं रंग की लाली।
कोई तो दौड़ती फिरती है मस्त रुखवाली।
किसी की कुर्ती भी अंगिया भी रंग से रंग डाली।
किसी को ऐश सिवा कुछ न कार होली में॥11॥
जो कुछ कहाती है अबला बहुत पिया-प्यारी।
चली है अपने पिया पास लेके पिचकारी।
गुलाल देख के फिर छाती खोल दी सारी।
पिया की छाती से लगती वह चाव की मारी।
न ताब दिल को रही ने क़रार होली में॥12॥
जो कोई स्यानी है उनमें तो कोई है नाकंद ।
वह शोर बोर थी सब रंग से निपट यक चंद।
कोई दिलाती है साथिन को यार की सौगंद।
कि अब तो जामा व अंगिया के टूटे हैं सब बंद।
‘फिर आके खेलेंगे होकर दो चार होली में’॥13॥
कोई तो शर्म से घूंघट में सैन करती है।
और अपने यार के नैनों में नैन करती है।
कोई तो दोनों की बातों को गै़न करती है।
कोई निगाहों में आशिक़ को चैन करती है।
ग़रज तमाशे हैं होते हज़ार होली में॥14॥
‘नज़ीर’ होली का मौसम जो जग में आता है।
वह ऐसा कौन है होली नहीं मनाता है।
कोई तो रंग छिड़कता है कोई गाता है।
जो ख़ाली रहता है वह देखने को जात है।
जो ऐश चाहो सो मिलता है यार होली में॥15॥
जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल होली में
जुदा न हमसे हो ऐ ख़ुश जमाल होली में।
कि यार फिरते हैं यारों के नाल होली में।
हर एक ऐश से हैगा बहाल होली में।
बहार और कुछ अब की है साल होली में।
मज़ा है सैर है हर सू कमाल होली में॥1॥
सभों के ऐश को फ़ागुन का यह महीना है।
सफ़ेदो ज़र्द में लेकिन कमाल कीना है।
तिला का ज़र्द कने सर ब सर ख़जीना है।
सफ़ेद पास फ़क़त सीम का दफ़ीना है।
हर एक दिल में है रुस्तमो-जाल होली में॥2॥
कहा सफे़द से आखि़र को ज़र्द ने यह पयाम।
कि ऐ सफ़ेद! तू अब छोड़ दे जहां का मुक़ाम।
मैं आया अब तो मेरा बन्दोबस्त होगा तमाम।
तू मुझसे आन के मिल छोड़ अपनी ज़िद का कलाम।
वगरना खींचेगा तू अनफ़आल होली में॥3॥
मिलेगा मुझसे तो मैं तुझको फिर बढ़ाऊँगा।
बनाके आपसा पास अपने ले बिठाऊँगा।
कहा सफ़ेद ने मैं मुत्लक़न न आऊंगा।
तुझी को बाद कई दिन के मैं भगाऊंगा।
तू अपना देखियो क्या होगा हाल होली में॥4॥
यह सुनके तैश में आ ज़र्द का सिपह सालार।
चढ़ आया फ़ौज को लेकर सफ़ेद पर यकबार।
इधर सफ़ेद भी लड़ने को होके आया सवार।
सफ़ें मुक़ाबला दोनों की जब हुई तैयार।
हुआ करख़्त जबाबो सवाल होली में॥5॥
मिला इधर से सफ़ेद और उधर से ज़र्द बहार।
घटाएं रंग बिरंग फ़ौजों की झुकीं सरशार।
पखाले मशके छुटीं रंग की पड़ी बौछार।
और चार तरफ़ से पिचकारियों की मारामार।
उड़ा ज़मीं से ज़मां तक गुलाल होली में॥6॥
यहां तो दोनों में आपस में हो रही यह जंग।
उधर से आया जो एक शोख़ बारुख़ गुल रंग।
हज़ारों नाज़नी माशूक़ और उसके संग।
नशे में मस्त, खुली जुल्फ़, जोड़े रंग बरंग।
कहा कि पूछो तो क्या है यह हाल होली में॥7॥
कहा किसी ने कि ऐ बादशाहे! महरुमा।
सफ़ेदी ज़र्द यह आपस में लड़ रहे हैं यहां।
यह सुन के आप वह दोनों के आगया दरमियां।
इधर से थांबा उसे और उधरसे उसको कि हां।
तुम इस कदर न करो इख़्तिलाल होली में॥8॥
महा तुम्हारी ख़सूमत का माजरा है क्या।
कहा सफ़ेद ने नाहक यह ज़र्द है लड़ता।
यह सुनके उसने वहीं अपना एक मगा जोड़ा।
फिर अपने हाथ से जोड़े को छिड़कवा रंगवा।
कहा कि दोनों रहो शामिल हाल होली में॥9॥
फिर अपने तन में जो पहनी वह खि़लअतें रंगीं।
सभों को हुक्म किया तुम भी पहनों अब यूं ही।
हज़ारों लड़कों ने पहने वह जोड़े फिर बूं हीं।
पुकारी खल्क़ कि इन्साफ़ चाहिए यूं ही।
हुआ फिर और ही हुस्नो जमाल होली में॥10॥
कियां मैं क्या कहूं फिर इस मजे़ की ठहरी बहार।
जिधर को आंख उठाकर नज़र करो एक बार।
हज़ारों बाग रवाँ हैं करोड़ों हैं गुलज़ार।
चमन चमन पड़े फिरते हैं सरब गुल रुख़सार।
अजब बहार के हैं नौनिहाल होली में॥11॥
जो नहर हुस्न की है मौज़ मार चलती है।
अलम लिए हुए आगे बहार चलती है।
अगाड़ी मस्त सफ़े गुल इज़ार चलती है।
पिछाड़ी आशिक़ों की सब क़तार चलती है।
सभों के दिल में खु़शी का खयाल होली में॥12॥
गुलाल अबीर से कितने भरे हैं चौपाये।
तमाम हाथों में गड़ुवे भी रंग के लाये।
कोई कहे है किसी से ‘कि हम भी लो आये’।
तो उससे कहता वह हंसकर कि ‘आ मेरे जाये’।
हंसी खु़शी का का है क़ालोमक़ाल होली में॥13॥
इसी बहार से गोकुलपरे में जा पहुंचे।
और मंडी नाई की और सईद खां की मंडी से।
सब आलम गंज में शाहगंजो ताजगंज फिरे।
हैं शहर में नहीं और गिर्द शहर में रहते।
हुआ हुजूम का बहरे कमाल होली में॥14॥
सभों को लेके किनारी बजार में आये।
फिर मोती कटरे फुलट्ठी के लोग सब धाये।
कि पीपल मंडी व पन्नीगली के भी आये।
जहां तहां से यह घिर घिर के लोग सब धाये।
कि बेनवाओं के देखें ज़माल होली में॥15॥
हुई जो सब में शरीफो-रज़ील में होली।
तो पहले रंग की पिचकारियों की मार हुई।
किसी का भर गया जामा किसी की पगड़ी भरी।
किसी के मुंह पे लगाई गुलाल की मुट्ठी।
तो रफ़्ता रफ़्ता हुई फिर यह चाल होली में॥16॥
घटाएं मशकों पखालों की झूम कर आई।
सुनहरी बिजलियां पिचकारियों की चमकाईं।
सबा ने रंग की बौछारें आके बरसाईं।
हवा ने आन के सावन की झड़ियां बनवाई।
लगी बरसने को मशको पखाल होली में॥17॥
इधर गुलाल का बादल भी छा गया घनघोर।
सदाये-राद हुई हर किसी का गुल और शोर।
यह लड़के नाज़नी बोलें हैं कोकिला जों मोर।
तमाम रंग की बौछार से है शराबोर।
अजब है रंग, लगी बरशकाल होली में॥18॥
लगा के चौक से और चार सू तलक देखा।
कि जगह एक भी तिल धरने की नहीं है ज़रा।
तमाम भीड़ से हर तरफ़ बन्द है रस्ता।
तिस ऊपर रंग का बादल है इस क़दर बरसा।
कि हर गली में बहा ढोलीखाल होली में॥19॥
‘नज़ीर’ होली तो है हर नगर में अच्छी खूब।
वलेक ख़त्म हुआ आगरे पे ये असलूब।
कहां हैं ऐसे सनम और कहां हैं ये महबूब।
जिन्हों के देखे से आशिक़ का होवे ताज़ा क़लूब।
तेरी निराली है यां चाल ढाल होली में॥20॥